Sunday, April 5, 2015

आज माँ को आधी रात फ़ोन कर जगाया


आज माँ को आधी रात फ़ोन कर जगाया,
कुछ कहना था उनसे |
आज पूनम की चाँद तले अश्क ने पलकों को नहलाया,
उसे बहना था कबसे ||

इस चाँद की रौशनी में बीती बोहोत सी रातें,
न जाने अनकही रह गयी यूँ दिल की कितनी बातें |
माँ, उन बातो का जिक्र करना चाहता हु फिर से ,
आज थोड़ी अपनी भी फिक्र करना चाहता हु फिर से ||

जिंदगी के कान में भी चुपके से कहा जाकर,
इतना क्यों सिखाती रहती हो सलीका जीने का?
मधुशाला पढ़कर सोचा बच्चन से कहुँ,
इतना क्यों सिखाते हो तरीका पिने का ||

ऐ जिंदगी, इतनी धौस भी अब न जमाओ,
राहगुज़र कोई हो न हो, ठोकर खाकर ही जी लेंगे |
मैखाने में रखी उस मदिरा की क्या बात करते हो,
हम पलकों से झड़ा अश्क का कतरा-कतरा भी पी लेंगे ||